साहब! इस बुढ़िया के पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा। मिट्टी में खेलते-खेलते ब्याह हो गया और समझदार जब बनी तब तक विधवा हो गई। मजदूरी करके बेटा पाला। भगवान ने उसे भी छीन लिया है। पिछले साल बेटा और अब बहू को कोरोना लील गया। आंखों में आंसू भी नहीं आते। उम्र के इस पड़ाव में दो पोते की जिम्मेदारी मेरे सिर पर है। इनकी परवरिश के लिए चाहे मुझे कुछ भी काम करना पड़े, मैं करूंगी, लेकिन बच्चों को अनाथ आश्रम नहीं भेजूंगी। ये कहते-कहते 65 वर्षीय दादी फफक पड़ी। बोली...मैं घरों में जाकर बर्तन साफ भी करूंगी, झाडू भी लगाऊंगी, परंतु अपने बच्चों को अपनी आंखों से दूर नहीं होने दूंगी।
Saturday, June 5, 2021
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खेलते-खेलते ब्याह,समझदार हुई तब विधवा,कोरोना में बेटा-बहू,घरों में बर्तन साफ करूंगी, जिगर के टुकड़े अनाथ आश्रम नहीं भेजूंगी
खेलते-खेलते ब्याह,समझदार हुई तब विधवा,कोरोना में बेटा-बहू,घरों में बर्तन साफ करूंगी, जिगर के टुकड़े अनाथ आश्रम नहीं भेजूंगी
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